लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
अर्थ- हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥
राधा चालीसा - जय वृषभान कुंवारी श्री श्यामा
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शम्भु सहाई ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
वैसे तो आप शिव चालीसा को किसी भी दिन बोल सकते हैं, लेकिन रविवार, सोमवार तथा बुधवार को भगवान शंकर जी की चालीसा करने का बड़ा महत्व बताया गया.
अर्थ: माता मैनावंती की दुलारी अर्थात माता पार्वती जी आपके बांये अंग में हैं, उनकी छवि भी अलग से मन को हर्षित करती है, तात्पर्य है कि आपकी पत्नी के रुप get more info में माता पार्वती भी पूजनीय हैं। आपके हाथों में त्रिशूल आपकी छवि को और भी आकर्षक बनाता है। आपने हमेशा शत्रुओं का नाश किया है।
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥